जब सैयां आये शाम को
तो लग गये चाँद मेरे नाम को
जब सैयां आये शाम को
तो लग गये चाँद मेरे नाम को
सर पे रख के नाच फिरी मैं
हर जलते हुए इलज़ाम को
जब सैयां आये शाम को
तो लग गये चाँद मेरे नाम को
खुदको देखने तक की भी
फुर्सत मुझको नहीं मिलती
उनके इश्क़ के नूर के आगे
शम्मा नहीं जलती
लाखों नाज़ लग गये है
फिर गुरूर के इस बदनाम को
जब सैयां आये शाम को
तो लग गये चाँद मेरे नाम को
सर पे रख के नाच फिरी मैं
हर जलते हुए इलज़ाम को