कैसे बताएँ, कैसे जताएँ
सुबह तक तुझमे जीना चाहें
भीगे लबों की गीली हँसी को
पीने का मौसम है पीना चाहें
इक बात कहूँ क्या इजाज़त है
तेरे इश्क़ की मुझको आदत है
इक बात कहूँ…
एहसास तेरे और मेरे तो
इक दूजे से जुड़ रहे
इक तेरी तलब मुझे ऐसी लगी
मेरे होश भी उड़ने लगे
मुझे मिलता सुकून तेरी बाहों में
जन्नत जैसी एक राहत है
इक बात कहूँ…
क्यों सबसे जुदा, क्यों सबसे अलग
अंदाज़ तेरे लगते
बेसाख्ता हम साये से तेरे
हर शाम लिपटते हैं
हर वक्त मेरा क़ुर्बत में तेरी
जब गुज़रे तो इबादत है
इक बात कहूँ…